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गोंड शब्द को तेन्दु शब्द कोंडा से लिया गया है, जिसका अर्थ है पहाड़ी। 1971 की जनगणना के अनुसार, गोंड जनजाति की जनसंख्या 5.01 मिलियन थी। 1991 की जनगणना तक, यह बढ़कर 9.3 मिलियन हो गया था और 2001 की जनगणना तक यह आंकड़ा लगभग 11 मिलियन था।अब यह बढ़कर 13 मिलियन हो चुका है
गोंड मध्य भारत का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है। गोंड जनजाति को पहले राज गोंड के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में यह नाम गोंड राजाओं के राजनीतिक ग्रहण के कारण अप्रचलित हो गया।वे द्रविड़ियन बोलते हैं और उन्हें अनुसूची जनजाति श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
कुछ पन्नों का इतिहास
गोंड जनजाति के रानी राजाओं का वर्चस्व हमें इतिहास के पन्नों में हमेशा पढ़ने को मिलता है ऐसा बहुत कम लोग जानते हैं कि रानी दुर्गावती ने राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपतशाह गोंड से विवाह किया था। दलपत शाह के अचानक मृत्यु के पश्चात रानी दुर्गावती ने बहुत बहादुरी से राज्य कि बागड़ोर संभाली थी। इतिहास गवाह है कि गोंड महिलाएं हमेशा से बहादुर और बुद्धिमान कार्य में कुशल होती है। पितृसत्तात्मक समाज होते हुए भी गोंड समाज में महिलाओं कि बातों का मान हमेशा से रखा जाता है।
दिल्ली गोंड बस्ती यात्रा
दिल्ली के चंद इलाकों में गोंड जनजाति समाज को देखा जा सकता है, दिल्ली के कल्याणपुरी इलाका उनमें से एक है जहां गोंड रहते है गोंड पुरुष अपने जीवननिर्वाह के लिए मजदूरी तथा यहां कि महिलाएं दवाओं का कार्य करती है। इन दवाओं को पहाड़ी दवाईयां कहा जाता है जामा मस्जिद के पास कबूतर बाजार के आस पास ये औरतें बैग में दवाओं को रखकर बेचती है। कभी सौ तो कभी दस रूपए कि आमदनी से इनका गुजारा भत्ता चलता है राजधानी में रहकर ये आदिवासी जनजाति के पास न रोजगार है न सरकार द्वारा कोई सहायता, लेकिन दवाईयों कि उत्तम जानकारी जरुर इनमें देखने को मिलती है, इन जड़ी-बूटियों के नाम काली मूसली,त्रिफला सफेद मूसली,सनाई का पत्ता,गौज के बीज आदि नाम है। यहां कि महिलाएं इन जड़ी-बूटियों से विभिन्न रोगों का निवारण के दावे ज़रूर करती है। गोंड महिलाएं महत्वकांक्षी साहसी बुद्धिजीवी होती है हर परिस्थिति में परिवार की नींव को बनाए रखती हैं। जामा मस्जिद के तमाम इलाकों में ये हमें घूमते हुए मिलेगी। दवाओं का रोजगार कि बात करें तो इन्होंने कुछ और आदिवासी जनजाति से इसकी शिक्षा ली ओर औषधि भोपाल से लाती है फिर कुछ सामग्री को मिलाकर ये विभिन्न दवाओं का निमार्ण करती है। गोंड औरतों कि स्थिति इलाके में कुछ ठीक नहीं है आए दिन पास के पुरुषों का औरतों पर छेड़छाड़ का मामला सामने आता है परंतु सरकार पुलिस तक यह मामला पहुंच नहीं पाता। रात को यह स्त्री घर से नहीं निकलती दिल्ली में रहते हुए भी इनकी स्थिति जंगलों से बदतर है। 6:00 बजे के बाद ये घर के कमरों से बाहर नहीं निकलती शौचालय कि बात करें तो रात्रि में अकेले ना जाकर दो से तीन महिलाएं साथ में सरकारी शौचालय में जाती हैं ताकि पास के पुरुषों के आतंक से बच सकें।
सीता वलका के अनुसार गोंड जनजाति समूह कि खासियत यह भी है कि गोंड महिलाएं अपने जीवननिर्वाह के लिए घर के मुखिया पर आश्रित नहीं रहती गोंड पितृसत्तात्मक समाज कि कड़ी है। परन्तु आसपास के बस्तीयों के पुरुषों का आतंक इतना ज्यादा है कि औरतें यहां सुरक्षित नहीं। रात ही नहीं दिन में भी हमें डर लगता है। यहां शिक्षा का अभाव है बच्चे पढ़ते नहीं कम उम्र में नशा करते हैं खाने को जब कुछ नहीं रहता तो चूहा खाते हैं।
दिल्ली के गोंड समुदाय कि समस्या रोजगार,आने वाली पीढ़ी कि शिक्षा व्यवस्था,गोंड हमेशा सरकार से प्रश्न करते है उनका जंगलों से यहां आना व्यर्थ तो नहीं। उम्दा जानकारी के बावजूद सरकार उनके प्रति सशक्त नहीं है सरकारी व्यवस्था के नाम पर उनके पास रहने को घर नहीं है गुजर बसर के लिए खाने को रोटी नहीं है क्या यह आदिवासी समाज के लिए मुश्किल घड़ी नहीं।
पहाड़ी दवाईयों का व्यापार एक रोजगार का जरिया हो सकता है गोंड जनजाति के लिए छोटे मोटे जगहों पर घूम घूम कर दवा बेचने वाली महिलाओं के लिए सरकार का कार्य उनकी जीवन को नयी रोशनी प्रदान कर सकता है। पुराणों में औषधीय गुण जिक्र हमें देखने को मिलता है पहाड़ों से लाई गई पत्तियों जड़ी बूटियों से बनी है औषधि आने वाली पीढ़ी भारतवर्ष के लिए एक वरदान स्वरुप है हमारी आने वाली नस्लें और औषधियों से अवगत रहे उनके बारे में जाने समझे आयुर्वेद का ज्ञान तथा उनसे जुड़े हुए बातों पर रिसर्च करें यह हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है गोंड एक ऐसा समाज है जो औषधियों का कार्य बहुत ही कुशलता से करता हुआ दिल्ली के आसपास हमें देखने को मिलता है इन महिलाओं को रोजगार के लिए घरों में काम नहीं औषधियों का काम चाहिए यह दवाई बनाना चाहती हैं समाज को एक नई दिशा देना चाहती हैं अपने व्यक्तित्व को पहचान देना चाहतीं हैं।सरकार को इनके हितों के बारे में सोचने का समय आ गया है।
15 Responses
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